सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम
वो खुदा हो गए देखते देखते
हश्र है वहशत-ए-दिल की आवारगी
हमसे पूछोमोहब्बत की दीवानगी
जो पता पूछते थे किसी का कभी
लापता हो गए देखते देखते
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी
ये है दुनिया यहाँ कितने अहल-ए-वफ़ा
बेवफा हो गए देखते देखते
गैर की बात तस्लीम क्या कीजिये
अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नहीं
अपना साया समझते थे जिनको कभी
वो जुदा हो गए देखते देखते
Nice Poem
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteकौन सी शैली है इस गजल की
ReplyDeleteThanks...its very grateful...link...i really like....
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteKya song hai
ReplyDeletegood song he was good lak and song
ReplyDeletegood
DeleteMy favourite song
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