जो पढ़ते रहे हम किताब-ए-मोहब्बत
जो पढ़ते रहे हम क़िताब-ए-मोहब्बत
नहीं पा सके हम जवाब-ए-मोहब्बत
चले आओ रंज़िश को दिल में छुपा कर
अभी भूल जाओ हिसाब-ए-मोहब्बत
मेरी बात मानो जरा तुम भी पी लो
है अमृत सा पानी शराब-ए-मोहब्बत
मिलो इस तरह जैसे गंगा में जमुना
कहीं दूर रख दो हिज़ाब-ए-मोहब्बत
ना घबराओ ग़ुमनाम दिल अपना खोलो
चुका दो सभी के हिसाब-ए-मोहब्बत
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