फ़िल्म - हीर-राँझा (1970)
गीतकार - कैफ़ी आज़मी
संगीतकार - मदन मोहन
स्वर - मो. रफ़ी
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं - 4
किसको सुनाऊँ हाल दिल-ए-बेकरार का
बुझता हुआ चराग हूँ अपने मज़ार का
ऐ काश भूल जाऊँ मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
अपना पता मिले ना ख़बर यार की मिले
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले
उनको खुदा मिले है खुदा की जिन्हें तलाश
मुझको बस एक झलक मेरे दिलदार की मिले
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
सेहरा में आके भी मुझको ठिकाना ना मिला
गम को भुलाने का कोई बहाना ना मिला
दिल तरसे जिसमें प्यार को क्या समझूँ उस संसार को
इक जीती बाज़ी हार के मैं ढूँढू बिछड़े यार को
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
दूर निगाहों से आँसू बहाता है कोई
कैसे ना जाऊँ मैं मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो या सारे बंधन तोड़ दो
ऐ पर्वत रास्ता दे मुझे ऐ काँटों दामन छोड़ दो
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं - 3
किसको सुनाऊँ हाल दिल-ए-बेकरार का
बुझता हुआ चराग हूँ अपने मज़ार का
ऐ काश भूल जाऊँ मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
अपना पता मिले ना ख़बर यार की मिले
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले
उनको खुदा मिले है खुदा की जिन्हें तलाश
मुझको बस एक झलक मेरे दिलदार की मिले
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
सेहरा में आके भी मुझको ठिकाना ना मिला
गम को भुलाने का कोई बहाना ना मिला
दिल तरसे जिसमें प्यार को क्या समझूँ उस संसार को
इक जीती बाज़ी हार के मैं ढूँढू बिछड़े यार को
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं
दूर निगाहों से आँसू बहाता है कोई
कैसे ना जाऊँ मैं मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो या सारे बंधन तोड़ दो
ऐ पर्वत रास्ता दे मुझे ऐ काँटों दामन छोड़ दो
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं, मेरे काम की नहीं - 3
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