Monday 16 January 2017

Lyrics of Mere rashq-e-kamar

                                                    मेरे रश्क-ए-कमर 

मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र ,जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया ,
बर्क़ सी गिर गई काम ही कर गई ,आग ऐसी लगाई मज़ा आ गया।

जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ ,चांदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया ,
चाँद के साए में ऐ मेरे साकिया ,तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया।

नशा शीशे में अंगराई लेने लगा ,बज़्म -ए -रिंदां में सागर खनकने लगे ,
मयकदे पे बरसने लगीं मस्तियाँ ,जब घटा घिर के छाई मज़ा आ गया।

बेहिजाबाना वो सामने आ गए ,और जवानी जवानी से टकरा गई ,
आँख उन की लड़ी यूं मेरी आँख से ,देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया।

आँख में थी हया हर मुलाक़ात पर ,सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर ,
उस ने शरमा के मेरे सवालात पे ,ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया।

शेख़ साहब का ईमान मिट ही गया ,देख कर हुस्न-ए-साक़ी पिघल ही गया ,
आज से पहले ये कितने मगरूर थे ,लुट गई पारसाई मज़ा आ गया।

ऐ फ़ना शुक्र है आज बाद-ए-फ़ना ,उस ने रख ली मेरे प्यार की आबरू ,
अपने हाथों से उस ने मेरी क़ब्र पर ,चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया।

                                                                                                 --- फ़ना बुलंद शहरी