फिल्म - अब्दुल्ला (1980)
गीतकार - आनंद बख़्शी
संगीतकार - आर. डी. बर्मन
स्वर - मो. रफ़ी
मैंने पूछा चांद से कि देखा है कहीं मेरे यार सा हसीं
चांद ने कहा चांदनी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चांद से कि देखा है कहीं मेरे यार सा हसीं
चांद ने कहा चांदनी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चांद से
मैंने ये हिजाब तेरा ढूँढा, हर जगह शबाब तेरा ढूँढा
कलियों से मिसाल तेरी पूछी, फूलों में ज़वाब तेरा ढूँढा
मैंने पूछा बाग से फ़लक हो या ज़मीं, ऐसा फूल है कहीं
बाग ने कहा, हर कली की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चाँद से
चाल है के मौज की रवानी, ज़ुल्फ़ है के रात की कहानी
होठ हैं के आईने कमल के, आँख है के मयकदों की रानी
मैंने पूछा जाम से, फलक हो या ज़मीं, ऐसी मय भी है कहीं
जाम ने कहा, मयकशी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चाँद से
खूबसुरती जो तूने पाई, लुट गयी खुदा की बस खुदाई
मीर की ग़ज़ल कहूँ तुझे मैं, या कहूँ ख़याम की रुबाई
मैं जो पूछूं शायरों से ऐसा दिलनशी, कोई शेर है कहीं
शायर कहे, शायरी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चांद से कि देखा है कहीं मेरे यार सा हसीं
चांद ने कहा चांदनी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा चाँद से